भूमिका:
गंगा भारत की आत्मा है। यह केवल एक नदी नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की वाहक, हमारी आध्यात्मिक धरोहर और करोड़ों लोगों की जीवनरेखा है। गंगा का प्रवाह जितना भौगोलिक है, उससे कहीं अधिक इसका महत्व सांस्कृतिक और धार्मिक है। लेकिन आज यह पुण्य सलिला प्रदूषण, अतिक्रमण और औद्योगिक कचरे की मार झेल रही है।
गंगा को निर्मल बनाने और उसकी अविरलता को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अनेक योजनाएं और अभियान चलाए गए हैं, जिनमें से ‘निर्मल गंगा अभियान’ एक प्रमुख आंदोलन है। इसमें केवल सरकारी प्रयास ही नहीं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों की भी विशेष भूमिका रही है, जिनमें सनातन सांस्कृतिक संघ अग्रणी रहा है।
निर्मल गंगा अभियान क्या है?
निर्मल गंगा अभियान भारत सरकार द्वारा प्रारंभ किया गया एक विस्तृत कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य गंगा को स्वच्छ, प्रदूषणमुक्त और सतत बनाए रखना है। इस अभियान में वैज्ञानिक विधियों, तकनीकी उपायों और जनभागीदारी के माध्यम से गंगा का पुनर्जीवन सुनिश्चित किया जा रहा है।
सनातन सांस्कृतिक संघ की भूमिका:
सनातन सांस्कृतिक संघ ने इस राष्ट्रीय अभियान को धर्म, संस्कृति और जनजागरूकता से जोड़ते हुए एक सामाजिक चेतना में परिवर्तित कर दिया। संघ ने अनेक स्तरों पर सक्रिय भागीदारी निभाई:
- जनजागरूकता रैली एवं संवाद: गंगा के किनारे बसे गांवों और शहरों में धार्मिक संस्थानों, विद्यार्थियों और आम नागरिकों के बीच गंगा की पवित्रता और पर्यावरणीय महत्व पर संवाद आयोजित किए गए।
- धार्मिक मंचों का उपयोग: संघ ने मंदिरों, गुरुद्वारों, जैन-स्थानकों, और बौद्ध विहारों जैसे मंचों से गंगा संरक्षण का संदेश फैलाया।
- घोषणापत्र एवं ज्ञापन सौंपना:
माननीय राष्ट्रपति महोदय और राज्यपालों को संघ द्वारा ज्ञापन सौंपे गए, जिनमें गंगा की स्वच्छता के लिए ठोस एवं सतत नीतियों की मांग की गई। यह एक ऐतिहासिक कदम था जिसमें धर्म और नीति निर्माण के बीच सेतु की भूमिका निभाई गई। - सांस्कृतिक आयोजन:
गंगा आरती, पर्यावरण गीत, नाट्य प्रस्तुतियों और चित्रकला प्रतियोगिताओं के माध्यम से बच्चों और युवाओं को जोड़ा गया।
हमारी ज़िम्मेदारी:
गंगा की निर्मलता केवल सरकारी योजना या संगठन की मुहिम नहीं, यह हर भारतीय का व्यक्तिगत धर्म है। हमें चाहिए कि:
- गंगा और अन्य नदियों में कूड़ा, पूजा सामग्री या प्लास्टिक न डालें
- स्थानीय स्तर पर जलस्रोतों की रक्षा करें
- गंगा को धर्म और प्रकृति के मिलन बिंदु के रूप में सम्मान दें
निष्कर्ष:
गंगा केवल जलधारा नहीं, वह जीवनधारा है। उसका संरक्षण केवल एक पर्यावरणीय या धार्मिक कार्य नहीं, यह हमारी सांस्कृतिक और नैतिक ज़िम्मेदारी है। सनातन सांस्कृतिक संघ जैसे संगठनों की सक्रिय भागीदारी ने गंगा अभियान को जनांदोलन का रूप दिया है।
आइए हम सब मिलकर यह संकल्प लें:
“गंगा को निर्मल, अविरल और अमर बनाएंगे – यही हमारी संस्कृति, यही हमारा धर्म है।”