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 इज़राइल–ईरान 12‑दिवसीय युद्ध और सीज़फायर पर गहरा विश्लेषण

 

1. पृष्ठभूमि

13 जून 2025 को इज़राइल ने “Operation Rising Lion” के अंतर्गत ईरानी परमाणु एवं सैन्य ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले शुरू किए। इसने गहराई से नतांज़, फोर्डो, इस्फ़हान जैसे स्थलों को निशाना बनाया, साथ ही IRGC उच्चाधिकारियों को भी निशाना बनाया

इसके जवाब में ईरान ने 150+ बैलिस्टिक मिसाइल और 100+ ड्रोन हमले किए, जिससे इज़राइल में गंभीर तबाही हुई।

2. अमेरिकी हस्तक्षेप और परमाणु हमले

22 जून को, यूएस ने तीन ईरानी परमाणु ठिकानों (नतांज़, फोर्डो, इस्फ़हान) पर “Operation Midnight Hammer” नामक एयर स्ट्राइक की, जिसमें भारी बंकर‑बस्टर बमों का इस्तेमाल हुआ।

हालांकि अमेरिकी खुफ़िया रिपोर्ट में कहा गया कि इन हमलों से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को केवल 1–2 महीनों के लिए ही रोका गया, न कि पूरी तरह नष्ट किया गया। इसके बावजूद राष्ट्रपति ट्रम्प ने यह दावा किया कि सभी ठिकानों को “पूर्णतः नष्ट” कर दिया गया था ।

3. सीज़फायर की घोषणा

23 जून को, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने “12‑दिन की जंग” के बाद सीज़फायर की घोषणा करते हुए कहा कि इज़राइल और ईरान दोनों की तरफ से हमला बंद हो जाएगा ।

ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अरघची ने हालांकि कहा कि कोई औपचारिक समझौता नहीं हुआ, और ईरान अपनी कार्रवाई तब तक रोक देगा जब तक इज़राइल ही हमला रोकेगा ।

4. संघर्षविराम: अस्थिर लेकिन प्रभावी

  • संघर्षविराम लागू हुआ और प्रारंभिक अवधि में मिसाइल और ड्रोन हमले बंद रहे ।
  • ट्रम्प दोनों देशों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उन्होंने समझौते का उल्लंघन किया, खासकर इज़राइल को कठोर शब्दों में चेतावनी दी ।
  • अमेरिकी विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़ ने कहा कि “कोई भी अब एक-दूसरे पर गोली नहीं चला रहा” और इसे सफल तथा शांतिपूर्ण आरंभ माना गया ।

5. मानव एवं आर्थिक प्रभाव

  • इज़रानी पक्ष में लगभग 610 नागरिकों की मृत्यु हुई, वहीं इज़राइल में 28 लोगों की मौत की पुष्टि हुई।
  • तेल की कीमतें गिर गईं और वैश्विक शेयर-बाजार पुनः स्थिर हुए क्योंकि संघर्षविराम की उम्मीद बनी ।
  1. युद्ध विराम के बाद की चुनौतियाँ
  • परमाणु कार्यक्रम: अमेरिका का कहना है कि यह केवल कुछ महीने के लिए बाधित हुआ, जबकि इज़रान कह सकता है कि यह “दसकों तक रोक” पाया गया ।
  • भरोसे की कमी: दोनों पक्ष प्रारंभिक उल्लंघनों से सामान्यीकृत बातचीत में संदेह बरकरार है ।
  • राजनयिक मार्ग: पूर्व अमेरिकी नेतृत्व वाले मध्यस्थता के बावजूद, दीर्घकालिक शांति बहुपक्षीय वार्ता और संधि पर निर्भर करेगी।

सनातन सांस्कृतिक संघ की राय

सनातन सांस्कृतिक संघ सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक सामंजस्य को बढ़ावा देता है, तथा अंतर-धार्मिक संवाद और शांति का समर्थन करता है। उनके अनुसार, विश्व में तनाव केवल सैन्य कार्रवाई से नहीं सुलझेगा—बल्कि प्रेम, करुणा, मूल्यों और आपसी सम्मान के आधार पर संवाद ही स्थायी सामंजस्य ला सकता है। वे यह मानते हैं कि सभी धर्मों के बीच परस्पर समझ और सहयोग से ही क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर हिंसा और तनाव को रोका जा सकता है। उन्होंने बार-बार ऐसे संघर्षों में सैन्य कार्रवाई के बजाय, नैतिकता और सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित शांतिपूर्ण हस्तक्षेप की बात कही है।

संघ का मानना है कि दोनो देशों को देशहित में विवेक से निर्णय लेना चाहिए, क्योंकि लड़ाइयाँ बंदूकों से नहीं, समझ और सूझबूझ से जीती जाती हैं। आज तक दुनिया इस बात को नहीं समझ पाई कि हर देश की अपनी अपेक्षाएँ होती हैं — और जब हम दूसरों की इच्छाओं या चिंताओं को नहीं समझते, तो सबसे बड़ा नुकसान होता है मानवता का। इसलिए संघ का दृढ़ विश्वास है कि आज की दुनिया को कूटनीति के बजाय संवेदना, और हथियारों के बजाय संवाद को अपनाकर ही आगे बढ़ना चाहिए। तभी वैश्विक शांति और स्थायित्व संभव है।

निष्कर्ष

निर्णायक दौर में शुरुआत में मामूली या अस्थायी संघर्षविराम रहा — जिसने जंग को शीघ्र रोका पर स्थायी और संरचित समझौते तक पहुंचना अभी बाकी है। घटना ने स्पष्ट किया कि मध्य पूर्व में स्थिरता के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग, खुफिया साझेदारी, और कूटनीतिक स्थिरता ज़रूरी हैं।

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