भारतीय संस्कृति की सबसे अद्भुत विशेषता यह है कि यहाँ हर पर्व केवल एक दिन का उत्सव नहीं होता, बल्कि वह मानव जीवन की गहराइयों में उतरने वाली आत्मिक यात्रा का प्रतीक होता है।
दीपोत्सव से लेकर छठ पूजा तक का यह पावन काल — आस्था, श्रद्धा, स्नेह और समर्पण के दिव्य सूत्रों में पिरोया हुआ है।
इस कालखंड में पाँच प्रमुख पर्व — धनतेरस, छोटी दिवाली, दीपावली, भैया दूज, लाभ पंचमी और छठ पूजा — ऐसे अध्याय हैं जो मानव जीवन को अंधकार से प्रकाश, स्वार्थ से सेवा, और भौतिकता से अध्यात्म की ओर अग्रसर करते हैं।
यह समय केवल दीप जलाने या व्रत करने का नहीं, बल्कि अपने अंतःकरण के दीपक को प्रज्वलित करने का है। सनातन संस्कृति के इस श्रृंखलाबद्ध पर्वों में हर दिन एक नई प्रेरणा, एक नया अर्थ, और एक नवीन आरंभ का संकेत देता है।
धनतेरस : आरोग्य, धन और धर्म का त्रिवेणी संगम
धनतेरस का पर्व, धन और आरोग्य – दोनों के मंगल प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, जो जीवन की चिकित्सा और पुनर्जन्म का प्रतीक है। यह दिन हमें सिखाता है कि असली संपत्ति केवल सोना-चाँदी नहीं, बल्कि सदाचार, स्वास्थ्य और सात्विक विचारों की संपदा है।
जब हम धनतेरस पर दीप जलाते हैं, तो वह दीप केवल घर का नहीं, हमारे मन और कर्म का भी शुद्धिकरण करता है। इस दिन बर्तन या सोने-चाँदी की वस्तुएँ खरीदना शुभ माना जाता है, परंतु उससे भी श्रेष्ठ है — सद्गुणों और संस्कारों की खरीदारी करना।
सनातन सांस्कृतिक संघ का संदेश:
“धन का अर्थ केवल भौतिक संग्रह नहीं, बल्कि वह ऊर्जा है जो सेवा, करुणा और धर्म के मार्ग पर प्रवाहित हो। सच्ची समृद्धि वही है जो समाज के कल्याण से जुड़ी हो। जब हर हृदय में संतोष और हर गृह में संस्कार हो, तभी आरोग्य और संपन्नता का प्रकाश स्थायी बनता है।”
छोटी दिवाली : अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा
धनतेरस के पश्चात् आने वाली छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी का पर्व हमें यह स्मरण कराता है कि बाहरी अंधकार से पहले मन का अंधकार मिटाना आवश्यक है। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर का संहार करने के रूप में मनाया जाता है — प्रतीक है अज्ञान, अहंकार और अधर्म पर विजय का।
जब घरों में दीप जलते हैं, तो वह केवल मिट्टी के दीपक नहीं होते; वे हमारी आशाओं, प्रार्थनाओं और नवीनीकृत आत्मा के प्रतीक बन जाते हैं। छोटी दिवाली हमें सिखाती है कि प्रकाश का अर्थ केवल रोशनी नहीं, बल्कि सत्य की पहचान, और आत्मा की जागृति भी है।
सनातन सांस्कृतिक संघ का संदेश:
“हर दीपक तब सार्थक होता है जब वह किसी और के अंधकार को मिटाए। जब हम दूसरों के दुःख को बाँटते हैं, तभी हमारे भीतर का दीप अमर हो उठता है। यही सनातन धर्म की आत्मा है — ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् अंधकार से प्रकाश की ओर चलने का संकल्प।”
दीपावली : आत्मा का आलोक और प्रेम का पर्व
दीपावली का दिन केवल लक्ष्मी पूजन या पटाखों का नहीं, बल्कि यह वह क्षण है जब मनुष्य और परमात्मा के बीच की दूरी मिट जाती है। भगवान श्रीराम के 14 वर्षों के वनवास के पश्चात् अयोध्या लौटने का यह दिन, सत्य की विजय और धर्म की पुनर्स्थापना का प्रतीक है।
दीपावली हमें यह स्मरण कराती है कि प्रकाश बाहरी नहीं, बल्कि अंतर्यामी होता है। जब घरों में दीपक जगमगाते हैं, तब आत्मा में भी आशा और श्रद्धा का दीपक प्रज्वलित होता है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि सच्चा आनंद भोग में नहीं, सहयोग और समर्पण में है।
सनातन सांस्कृतिक संघ का संदेश:
“सनातन धर्म हमें सिखाता है कि दीपावली का अर्थ केवल लक्ष्मी की कृपा नहीं, बल्कि आत्मा की समृद्धि है। जब समाज एकजुट होकर प्रेम, धर्म और कर्तव्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है, तभी सच्ची दीपावली होती है। दीपावली का दीप हम सबके अंतःकरण में जले, और विश्व में शांति का संदेश फैलाए।“
भैया दूज : स्नेह, सुरक्षा और विश्वास का पवित्र बंधन
दीपोत्सव के पश्चात् आता है भैया दूज, जो भाई–बहन के अमर बंधन का उत्सव है। यह दिन केवल तिलक और उपहारों का नहीं, बल्कि परस्पर विश्वास, सुरक्षा और प्रेम की शपथ का दिन है।
बहन अपने भाई के दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना करती है, और भाई उसे सदैव सम्मान व सुरक्षा का वचन देता है। यह संबंध भारतीय परिवार व्यवस्था का सबसे संवेदनशील और संस्कारित पक्ष है, जो हमें यह सिखाता है कि रक्त संबंध केवल शरीर से नहीं, बल्कि आत्मा से भी जुड़ते हैं।
सनातन सांस्कृतिक संघ का संदेश:
“भाई–बहन का संबंध मानवता के सबसे पवित्र सूत्रों में से एक है। यह हमें याद दिलाता है कि सुरक्षा, स्नेह और सहयोग ही समाज की नींव हैं। सनातन संस्कृति का सार यही है — जहाँ परिवार के प्रत्येक संबंध में करुणा, संवेदना और आदर का दीप जलता रहे।“
लाभ पंचमी : धर्म, व्यापार और सदाचार का संतुलन
लाभ पंचमी का दिन व्यापार और नए आरंभ के लिए शुभ माना जाता है। यह केवल आर्थिक लाभ का नहीं, बल्कि नैतिक लाभ और आध्यात्मिक समृद्धि का पर्व है। व्यापार जब धर्म से जुड़ता है, तो वह समाज निर्माण का माध्यम बनता है।
इस दिन व्यापारी वर्ग अपने बहीखातों की पूजा करता है — प्रतीक है ज्ञान, कर्म और न्याय के प्रति समर्पण का। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हर लाभ का मूल्य तभी है जब वह सच्चाई और सेवा से जुड़ा हो।
सनातन सांस्कृतिक संघ का संदेश:
“लाभ वही श्रेष्ठ है जो धर्म से उपजा हो। व्यापार, सेवा और समाज – इन तीनों का संतुलन ही सनातन अर्थशास्त्र का मर्म है। लाभ पंचमी हमें यह सिखाती है कि सच्ची सफलता दूसरों के उत्थान से ही प्राप्त होती है।“
छठ पूजा : सूर्योपासना और कृतज्ञता का उत्सव
दीपोत्सव श्रृंखला का अंतिम और अत्यंत भावनात्मक पर्व है छठ पूजा — सूर्य देव और छठी मइया की आराधना का अद्भुत पर्व। यह व्रत केवल उपवास या आस्था नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और आत्मसंयम का प्रतीक है।
भक्त जब उदयमान और अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं, तो वह सूर्य के माध्यम से जीवन, प्रकाश और ऊर्जा को प्रणाम करते हैं।
छठ का प्रत्येक क्षण — चाहे वह संध्या अर्घ्य हो या प्रातः अर्घ्य — एक जीवन–दर्शन है, जो हमें प्रकृति से एकात्म होने का संदेश देता है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि विनम्रता, संयम और सेवा ही ईश्वर की सच्ची पूजा हैं। व्रती माताएँ जब जल में खड़ी होकर सूर्य को नमन करती हैं, तो वह केवल अपने परिवार के लिए नहीं, बल्कि समस्त सृष्टि के कल्याण के लिए प्रार्थना करती हैं।
सनातन सांस्कृतिक संघ का संदेश:
“प्रकृति ही परमात्मा का प्रत्यक्ष रूप है। जब हम सूर्य, जल, वायु और भूमि का सम्मान करते हैं, तभी हमारा जीवन संतुलित और समृद्ध बनता है। छठ पूजा हमें यह सिखाती है कि प्रकृति के प्रति आभार ही सच्चा धर्म है।“
सनातन सांस्कृतिक संघ का समन्वित संदेश
“दीपोत्सव से लेकर छठ पूजा तक का यह पावन काल हमें यह स्मरण कराता है कि धर्म केवल आस्था नहीं, बल्कि जीवन जीने की दिशा है।“
सनातन सांस्कृतिक संघ का उद्देश्य केवल परंपराओं को मनाना नहीं, बल्कि उनके पीछे छिपे आध्यात्मिक और सामाजिक संदेशों को जन-जन तक पहुँचाना है।
संघ का मानना है कि जब हम संस्कार, करुणा, और सह–अस्तित्व की भावना से प्रेरित होकर जीवन जीते हैं, तभी सच्चा भारत पुनः अपने स्वर्ण युग की ओर बढ़ सकता है।
संघ के आचार्यों हरिप्रिया भार्गव जी का संदेश है —
“दीप प्रज्वलित करना मात्र एक कर्मकांड नहीं, अपितु यह एक दिव्य संकल्प है — अपने अंतःकरण के अंधकार को दूर करने का। जब हम अपने प्रकाश से किसी अन्य के जीवन में आलोक फैलाते हैं, तभी हम वास्तव में ‘मानवता’ के सच्चे अर्थ को जीते हैं।”
सनातन सांस्कृतिक संघ इस दीपोत्सव के पवित्र अवसर पर सभी से यह आह्वान करता है —
- धर्म के मार्ग पर चलें,
- प्रकृति का आदर करें,
- परिवार में स्नेह और समाज में समरसता का दीप जलाएँ।
जब हर व्यक्ति अपने अंतःकरण में एक दीप जलाएगा, तब यह जग स्वयं प्रकाशित हो उठेगा —
और यही होगा सनातन संस्कृति का पुनर्जागरण।
निष्कर्ष : प्रकाश का वह शाश्वत संदेश
धनतेरस हमें स्वास्थ्य और समृद्धि की प्रेरणा देता है,
छोटी दिवाली सिखाती है अंधकार से मुक्ति का संदेश,
दीपावली जगाती है धर्म और प्रेम का आलोक,
भैया दूज जोड़ती है स्नेह और सुरक्षा का बंधन,
लाभ पंचमी बताती है धर्म और व्यापार का संतुलन,
और छठ पूजा दिखाती है प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और तपस्या का अद्भुत रूप।
इन छह पर्वों के माध्यम से भारत की आत्मा कहती है —
“मैं वही दीप हूँ, जो युगों से जल रहा है।
मुझे बुझाया नहीं जा सकता, क्योंकि मैं केवल मिट्टी का नहीं — संस्कृति का दीप हूँ।“
सनातन सांस्कृतिक संघ का अंतिम संदेश:
“जहाँ धर्म है, वहाँ शांति है।
जहाँ करुणा है, वहाँ समृद्धि है।
और जहाँ प्रेम है, वहाँ परमात्मा का निवास है।
दीपोत्सव से छठ पूजा तक – आइए, हम सब मिलकर न केवल अपने घरों को, बल्कि अपने हृदयों को भी प्रकाशित करें।”





