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हरिप्रिया भार्गव की बातों से: सनातन रक्षा यात्रा 2.0 का अनुभव

िय साथियों,

मेरे दिल में आज भी सनातन एकता यात्रा 1.0 की यादें ताजगी से भरी हुई हैं, और मैं चाहती हूँ कि आप भी इस अद्भुत अनुभव का हिस्सा महसूस करें। यह यात्रा न केवल धार्मिक जागृति की दिशा में एक कदम थी, बल्कि हमारी समाज की एकता और समृद्धि की ओर एक ऐतिहासिक यात्रा थी।

29 नवम्बर से 2 दिसम्बर 2024 तक हम सभी ने सनातन संस्कृतिक संघ द्वारा आयोजित की गई इस यात्रा में भाग लिया, जो एक अद्वितीय प्रयास था। यात्रा का उद्देश्य था न केवल सनातन धर्म की सशक्तता को समझाना, बल्कि हमारे समाज के प्रत्येक व्यक्ति में एकता, प्रेम और भाईचारे की भावना को प्रबल करना।

तुवान मंदिर से शुरू होकर, हम सबने राम धुन के साथ यात्रा की शुरुआत की। एक भव्य शोभायात्रा के रूप में यात्रा का प्रारंभ हुआ, जहां हर कदम पर एकता और सामूहिकता का अनुभव हुआ। मंदिर से निकलते हुए, यह यात्रा हमें यह एहसास दिलाती रही कि सनातन धर्म केवल एक धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि यह जीवन का एक अनमोल दर्शन है।

हमने *टीकमगढ़, *छतरपुर और महोबा जैसे स्थानों को कवर किया, जहां सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों ने हमारे विचारों और आस्थाओं को नई दिशा दी। टीकमगढ़ में आयोजित भंडारे में 20,000 से अधिक लोग शामिल हुए, जो न केवल भोजन प्राप्त करने के लिए आए थे, बल्कि एकता और प्रेम के प्रतीक के रूप में मौजूद थे।

इस यात्रा के दौरान जैन मुनि अविचल सागर महाराज और जगतगुरु शंकराचार्य श्री ओंकारानंद सरस्वती महाराज जैसे महान संतों के उपदेशों ने हमें यह बताया कि मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। उन्होंने अपने विचारों से हमें यह समझाया कि धर्म का उद्देश्य केवल आत्मिक उन्नति नहीं है, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग की भलाई भी है।

सनातन एकता यात्रा 1.0 ने हमें यह दिखाया कि हमारे समाज में, जहां पर अक्सर मतभेद और भेदभाव होते हैं, वहां सांस्कृतिक और धार्मिक समरसता को बढ़ावा देना कितना महत्वपूर्ण है। यात्रा ने हमें यह सवाल किया कि क्या हम अपनी विविधताओं के बावजूद एक साथ चल सकते हैं और एक-दूसरे के साथ प्रेम, सम्मान और समझ के साथ रह सकते हैं?

हमारे समाज में जो सामूहिकता की भावना कमजोर पड़ती जा रही है, उसे फिर से जागृत करने का यही समय है। यदि हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक आस्थाओं को सही दिशा में आगे बढ़ाएं, तो हम न केवल अपने समाज को सुधार सकते हैं, बल्कि एक समृद्ध और शांतिपूर्ण राष्ट्र का निर्माण भी कर सकते हैं।

यह यात्रा अब समाप्त हो चुकी है, लेकिन इसका प्रभाव हम सभी के दिलों में सदैव रहेगा। हमें यह सोचने की जरूरत है कि हम इस यात्रा से क्या सीख सकते हैं और कैसे हम इसे अपने जीवन में उतार सकते हैं। मैं आपको इस यात्रा से जुड़ी अपनी अनुभवों को साझा करने के लिए आमंत्रित करती हूँ।

आइए हम सब मिलकर इस संदेश को फैलाएं और एकता की ताकत को समझने का प्रयास करें। सनातन एकता यात्रा 1.0 अब केवल एक यात्रा नहीं रही, बल्कि यह एक आंदोलन बन चुकी है, जो हमें समाज में प्रेम, शांति और एकता के मूल्य को समझने की प्रेरणा देती है।

हरिप्रिया भग्गव
संस्थापक, सनातन संस्कृतिक संघ

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सनातन एकता यात्रा 1.0: एक यात्रा जो सभी को एक साथ लाती है

प्रिय साथियों,

मेरे दिल में आज भी सनातन एकता यात्रा 1.0 की यादें ताजगी से भरी हुई हैं, और मैं चाहती हूँ कि आप भी इस अद्भुत अनुभव का हिस्सा महसूस करें। यह यात्रा न केवल धार्मिक जागृति की दिशा में एक कदम थी, बल्कि हमारी समाज की एकता और समृद्धि की ओर एक ऐतिहासिक यात्रा थी।

29 नवम्बर से 2 दिसम्बर 2024 तक हम सभी ने सनातन संस्कृतिक संघ द्वारा आयोजित की गई इस यात्रा में भाग लिया, जो एक अद्वितीय प्रयास था। यात्रा का उद्देश्य था न केवल सनातन धर्म की सशक्तता को समझाना, बल्कि हमारे समाज के प्रत्येक व्यक्ति में एकता, प्रेम और भाईचारे की भावना को प्रबल करना।

तुवान मंदिर से शुरू होकर, हम सबने राम धुन के साथ यात्रा की शुरुआत की। एक भव्य शोभायात्रा के रूप में यात्रा का प्रारंभ हुआ, जहां हर कदम पर एकता और सामूहिकता का अनुभव हुआ। मंदिर से निकलते हुए, यह यात्रा हमें यह एहसास दिलाती रही कि सनातन धर्म केवल एक धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि यह जीवन का एक अनमोल दर्शन है।

हमने *टीकमगढ़, *छतरपुर और महोबा जैसे स्थानों को कवर किया, जहां सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों ने हमारे विचारों और आस्थाओं को नई दिशा दी। टीकमगढ़ में आयोजित भंडारे में 20,000 से अधिक लोग शामिल हुए, जो न केवल भोजन प्राप्त करने के लिए आए थे, बल्कि एकता और प्रेम के प्रतीक के रूप में मौजूद थे।

इस यात्रा के दौरान जैन मुनि अविचल सागर महाराज और जगतगुरु शंकराचार्य श्री ओंकारानंद सरस्वती महाराज जैसे महान संतों के उपदेशों ने हमें यह बताया कि मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। उन्होंने अपने विचारों से हमें यह समझाया कि धर्म का उद्देश्य केवल आत्मिक उन्नति नहीं है, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग की भलाई भी है।

सनातन एकता यात्रा 1.0 ने हमें यह दिखाया कि हमारे समाज में, जहां पर अक्सर मतभेद और भेदभाव होते हैं, वहां सांस्कृतिक और धार्मिक समरसता को बढ़ावा देना कितना महत्वपूर्ण है। यात्रा ने हमें यह सवाल किया कि क्या हम अपनी विविधताओं के बावजूद एक साथ चल सकते हैं और एक-दूसरे के साथ प्रेम, सम्मान और समझ के साथ रह सकते हैं?

हमारे समाज में जो सामूहिकता की भावना कमजोर पड़ती जा रही है, उसे फिर से जागृत करने का यही समय है। यदि हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक आस्थाओं को सही दिशा में आगे बढ़ाएं, तो हम न केवल अपने समाज को सुधार सकते हैं, बल्कि एक समृद्ध और शांतिपूर्ण राष्ट्र का निर्माण भी कर सकते हैं।

यह यात्रा अब समाप्त हो चुकी है, लेकिन इसका प्रभाव हम सभी के दिलों में सदैव रहेगा। हमें यह सोचने की जरूरत है कि हम इस यात्रा से क्या सीख सकते हैं और कैसे हम इसे अपने जीवन में उतार सकते हैं। मैं आपको इस यात्रा से जुड़ी अपनी अनुभवों को साझा करने के लिए आमंत्रित करती हूँ।

आइए हम सब मिलकर इस संदेश को फैलाएं और एकता की ताकत को समझने का प्रयास करें। सनातन एकता यात्रा 1.0 अब केवल एक यात्रा नहीं रही, बल्कि यह एक आंदोलन बन चुकी है, जो हमें समाज में प्रेम, शांति और एकता के मूल्य को समझने की प्रेरणा देती है।

हरिप्रिया भग्गव
संस्थापक, सनातन संस्कृतिक संघ

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सनातन एकता यात्रा: एक दिव्य संगम

सनातन संस्कृतिक संघ द्वारा आयोजित “सनातन एकता यात्रा” हमारी संस्कृति, परंपरा और धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए एक ऐतिहासिक पहल थी। इस यात्रा का उद्देश्य न केवल सनातन धर्म की विविधता को दर्शाना था, बल्कि इसमें समाहित समानता, प्रेम, और शांति के मूल्यों को समाज में प्रसारित करना भी था।

यात्रा का परिचय
सनातन एकता यात्रा भारत की चार प्रमुख धार्मिक धाराओं – वैदिक, जैन, बौद्ध, और सिख परंपराओं को एक मंच पर लाने का एक अद्वितीय प्रयास है। यह यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक एकता और सांस्कृतिक संरक्षण का भी प्रतीक है।

आयोजक:

संस्थान: सनातन संस्कृतिक संघ
संस्थापक: हरिप्रिया भार्गव
मूल उद्देश्य: सनातन धर्म की समृद्ध परंपराओं का संरक्षण और प्रसार।
यात्रा के प्रमुख उद्देश्य
धार्मिक एकता: विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के बीच आपसी समझ और सौहार्द बढ़ाना।
सांस्कृतिक संवर्धन: हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना।
आध्यात्मिक जागरूकता: लोगों में सनातन धर्म के आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देना।
सामाजिक सेवा: समाज के कमजोर वर्गों तक मदद और संसाधन पहुंचाना।
यात्रा की प्रमुख गतिविधियां

यात्रा में हर वर्ग और आयु के लोगों के लिए विविध और प्रेरणादायक कार्यक्रम आयोजित किए गए:

1.⁠ ⁠धार्मिक अनुष्ठान और प्रवचन
सुबह और शाम को भव्य आरती और भजन सत्र।
संतों और धर्मगुरुओं द्वारा प्रवचन, जिन्होंने सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों को सरल और प्रभावी तरीके से समझाया।
2.⁠ ⁠सांस्कृतिक प्रस्तुतियां
लोक संगीत और नृत्य।
रामायण, महाभारत, और अन्य धर्मग्रंथों पर आधारित नाट्य प्रस्तुतियां।
3.⁠ ⁠आध्यात्मिक कार्यशालाएं
योग और ध्यान सत्र।
धर्मग्रंथों का अध्ययन और चर्चा।
4.⁠ ⁠सामाजिक सेवा अभियान
नि:शुल्क चिकित्सा शिविर।
गरीब और जरूरतमंदों के लिए भोजन और कपड़ों का वितरण।
बच्चों और महिलाओं के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य जागरूकता शिविर।
यात्रा का मार्ग और सहभागी
यात्रा विभिन्न धार्मिक स्थलों और सांस्कृतिक केंद्रों से होकर गुजरी। हर जगह स्थानीय समुदायों ने बड़ी संख्या में भाग लिया और आयोजन को सफल बनाया।

प्रमुख मार्ग
पहला पड़ाव: धर्मिक स्थल
दूसरा पड़ाव: सांस्कृतिक स्थल
अंतिम पड़ाव: आध्यात्मिक केंद्र
हरिप्रिया भार्गव का योगदान
सनातन संस्कृतिक संघ की संस्थापक, हरिप्रिया भार्गव, ने न केवल इस यात्रा का नेतृत्व किया, बल्कि इसके हर पहलू को सफलता तक पहुंचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका मानना है कि, “धर्म का उद्देश्य केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं है। यह समाज में शांति, एकता, और करुणा का आधार भी है।”

यात्रा का सामाजिक प्रभाव
धार्मिक सहिष्णुता: विभिन्न समुदायों और धर्मों के बीच आपसी सम्मान और समझ को बढ़ावा मिला।
सांस्कृतिक जागरूकता: युवा पीढ़ी को हमारी समृद्ध परंपराओं और धर्मग्रंथों के महत्व को समझने का मौका मिला।
सामाजिक सेवा: समाज के वंचित वर्गों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आया।
भविष्य की योजनाएं
सनातन एकता यात्रा की सफलता को देखते हुए सनातन संस्कृतिक संघ ने इसे एक वार्षिक आयोजन बनाने का निर्णय लिया है। भविष्य में इसमें और अधिक नवाचार और सामाजिक जुड़ाव को शामिल किया जाएगा।

निष्कर्ष
“सनातन एकता यात्रा” न केवल एक धार्मिक और सांस्कृतिक यात्रा थी, बल्कि यह भारतीय समाज के भीतर एकता और सौहार्द को बढ़ावा देने का एक प्रेरणादायक प्रयास भी था। सनातन संस्कृतिक संघ का यह प्रयास हमारी परंपराओं और मूल्यों को नई पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए एक मजबूत आधार बना।

सनातन संस्कृतिक संघ की इस पहल ने यह साबित कर दिया कि हमारी संस्कृति और धर्म केवल परंपराओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह मानवता और सद्भाव का प्रतीक भी हैं।

“संस्कृति से संबंध, सभ्यता का सम्मान” का यह संदेश आने वाले समय में भी समाज में प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।

जय सनातन!

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संस्कृतिक उत्सव और कार्यशालाएँ

भारत की धरोहर स्थल: वास्तुकला और सांस्कृतिक

भारत के धरोहर स्थल, जैसे खजुराहो के मंदिर, राजस्थान के किले, और कोणार्क का सूर्य मंदिर, इसकी समृद्ध सांस्कृतिक और वास्तुकला विरासत को प्रदर्शित करते हैं। सनातन सांस्कृतिक संघ इन स्थलों के संरक्षण और प्रचार के लिए समर्पित है, जिससे ये खजाने आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहें।